एक समय था जब अपकृत्य और अपराध मैं अंतर नहीं था. तब सभी दण्ड विधियों का लक्ष्य था की गुनेहगार को जुर्माना देने के लिए बाध्य किया जाये और जुर्माना ले कर छोड़ दिया जाये.
विधिशास्त्री इस दण्ड व्यवस्था को सही नहीं मानते थे. उनके अनुसार इस व्यवस्था मैं अधिक गंभीर जुर्म के लिए कोई कठोर सजा नहीं थी. इसके बाद 13 वी शताब्दी में सर्व प्रथम याचिका
व्यवस्था सामने आई. यह थी उल्लंघन/अतिचार विरोधी याचिका (writ of trespass), जिसमे गुनेहगार को याचिका के माध्यम से दण्ड और जुर्माना दोनों दिलाये जा सकते थे.
हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखें अच्छा पढ़ें
बी एस पाबला
Tahe dilse swagat hai..
जवाब देंहटाएंपुरानी दंड व्यवस्था पर अच्छा लेख है। बधाई!
जवाब देंहटाएंइस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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