सोमवार, 22 मार्च 2010

Law ऑफ़ टोर्टस



एक समय था जब अपकृत्य और अपराध मैं अंतर नहीं था. तब सभी दण्ड विधियों का लक्ष्य था की गुनेहगार को जुर्माना देने के लिए बाध्य किया जाये और जुर्माना ले कर छोड़ दिया जाये.
विधिशास्त्री इस दण्ड व्यवस्था को सही नहीं मानते थे. उनके अनुसार इस व्यवस्था मैं अधिक गंभीर जुर्म के लिए कोई कठोर सजा नहीं थी. इसके बाद 13 वी शताब्दी में सर्व प्रथम याचिका
व्यवस्था सामने आई. यह थी उल्लंघन/अतिचार विरोधी याचिका (writ of trespass), जिसमे गुनेहगार को याचिका के माध्यम से दण्ड और जुर्माना दोनों दिलाये जा सकते थे.   

4 टिप्‍पणियां:

  1. हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है।

    अच्छा लिखें अच्छा पढ़ें

    बी एस पाबला

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  2. पुरानी दंड व्यवस्था पर अच्छा लेख है। बधाई!

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  3. इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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